Friday, 17 March 2017

बात करने की कला

अपनी  बात को ठीक से बोल पाना भी एक कला है। बातचीत में जरूरी नहीं कि बहुत ज्यादा बोला जाए. साधारण  बात भी नपे -तुले शब्दों में की जाये तो उसका गहरा असर  है।  ऐसे ही कुछ बिंदु नीचे  हैं। 

१. बेझिझक एवम निर्भय होकर अपनी बात को स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए। 
२. भाषा में मधुरता, शालीनता व आपसी सद्भावना बनी रहनी चाहिए।
३. दूसरो की बात को भी ध्यान से व पूरी तरह से सुनकर सोच विचार करके फिर उत्तर देना चाहिए। धैर्यपूर्वक किसी को सुनना एक बहुत बड़ा सद्गुण है।  सामने देखकर बात करनी चाहिए। 
४. बोलते समय सामने वाले की रूचि भी ध्यान रखना चाहिए, सोच समझकर, संतुलित रूप से अपनी बात रखनी चाहिए।  बात करते हुवे अपने हाव-भाव व शब्दो पर विशेष ध्यान देते हुवे बात करनी चाहिए।  
५. बातचीत में हार्दिक सदभाव व आत्मीयता का भाव बना रहे। 
६. सामने वाला बात में रस न ले रहा हो तो बात का विषय बदल देना चाहिए। 
७. पीठ पीछे किसी की निंदा न करनी चाहिए और न सुननी चाहिए। 
                                                                                                               
                                                                                                             पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी

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